राजस्थान में स्थित कुंभलगढ़ किले का इतिहास बहुत ही प्राचीन और गौरवशाली रहा है। मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने अनेक किलो का निर्माण करवाया था। जिसमें कुंभलगढ़ का किला बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है जो की मेवाड़ के इतिहास में एक मिल का पत्थर साबित हुआ।
कुंभलगढ़ किले की 36 किलोमीटर की दीवार दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है जो कि दुनियाभर में बहुत प्रभावशाली है। चीन की दीवार के बाद यह दीवार दुनिया की सबसे बड़ी दीवार है। कुंभलगढ़ दुर्ग उदयपुर से 88 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यह किला समुद्र तल से 1900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा यह किला मेवाड़ में चितौड़गढ़ दुर्ग के बाद सबसे प्रमुख माना जाता है। इस किले का इतिहास रहा है कि यह किला हमेशा से अभेद्य और अजेय रहा है। सिर्फ एक बार इस किले को पराजय का सामना करना पड़ा जब अकबर और मानसिंह की सेनाओं ने घेर लिया था
और इस किले में खाद्य सामग्री और पानी की भारी किल्लत हो गई थी जिसकी वजह से कुंभलगढ़ की सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा। इस दुर्ग का निर्माण राणा कुम्भा ने 15 वी शताब्दी में करवाया था। इस किले को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। यह दुर्ग कई पहाड़ों और घाटियों से मिलकर बना हुआ है।
इस दुर्ग में ऊंचाई वाले इलाकों पर महल, मंदिर और इमारतें बनी हुई है और आस-पास समतल भूमि पर कृषि कार्य किया जाता है। इस दुर्ग के अंदर की तरफ एक और दुर्ग बना हुआ है जिसको कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है यह गढ़ 7 विशाल द्वारो वाली मजबूत दीवार से बना हुआ है। जिसको भेदना बहुत ही मुश्किल है। इस दुर्ग के शीर्ष में बादल महल है और सबसे उपर कुम्भा महल है।
कुम्भा महल महाराणा कुम्भा का सबसे प्रमुख निवास स्थल था। इस किले के अंदर लगभग 360 मंदिर बने हुए हैं जिसमें 300 जैन मंदिर है और बाकी हिन्दू मंदिर है। कुंभलगढ़ दुर्ग के चारो और 13 विशाल पर्वत है और 7 विशाल और मजबूत द्वार बने हुए हैं। मेवाड़ में महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह तक सभी राजवंशियों की इस दुर्ग ने हमेशा सुरक्षा की है।
यह दुर्ग मेवाड़ के राजाओं का प्रमुख निवास स्थान रहा है। इस किले कि दीवार इतनी चोड़ी है कि एक साथ 4 घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं। किले में घुसने के लिए ओरथपोल, हल्ला पोल, हनुमानपोल और विजयपोल आदि प्रमुख द्वार है।
कुंभलगढ़ किले का इतिहास
मेवाड़ के महान योद्धा वीर शिरोमणि महराणा प्रताप का जन्म भी इसी किले में हुआ था। महाराणा प्रताप अपनी वीरता की वजह से दुनिया भर में जाने जाते है। महाराणा प्रताप ने महलों को ठुकरा दिया परन्तु गुलामी स्वीकार नहीं की। यही पर कुंवर प्रथ्वी राज और राणा सांगा का बचपन बीता था।
राणा सांगा का भी मेवाड़ के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। राणा सांगा के पूरे शरीर पर 84 घाव होने के बाद भी वो युद्ध लड़ते रहे थे ऐसे महान योद्धा थे राणा सांगा। महाराणा उदय सिंह का भी पालन पोषण भी पन्नाधाय ने इसी महल में छिप कर किया था।
महाराणा उदय सिंह ने है उदयपुर शहर को बसाया था जो कि आज दुनिया भर में प्रसिद्ध है। हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने इसी किले में काफी समय बिताया था। इस दुर्ग के बनने के तुरन्त बाद से ही इस पर हमले होने शुरू हो गए फिर भी यह किला अजेय रहा है।
कुंभलगढ़ किले की वास्तुकला और स्थापत्य कला बहुत ही अद्भुत है। यह दुर्ग भारत के चुनिंदा विशाल दुर्गों में शामिल हैं। कुल मिलाकर यह दुर्ग बहुत ही ऐतिहासिक और शूरवीरों की जन्म स्थली रहा है। चारो और पहाड़ों से गिरा यह दुर्ग बहुत ही खूबसूरत और अद्भुत है।
कुंभलगढ़ किले का इतिहास, इस किले की ऊंचाई के बारे में महान लेखक अबुल फजल ने लिखा है कि यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से उपर की तरफ देखने पर सिर की पगड़ी नीचे गिर जाती है। कर्नल जेम्स टॉड ने भी इस किले की बहुत सराहना की है उन्होंने चितौड़गढ़ दुर्ग के बाद इसी दुर्ग को सबसे मजबूत बताया।
इस किले को बनाने में लगभग 15 वर्षों का समय लगा था। कुंभलगढ़ दुर्ग राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। इस किले को जितने के लिए बहुत से शासकों ने प्रयास किए पर सफलता हासिल नहीं कर पाए। कुंभलगढ़ किले का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है यहां आने पर आप को एक गर्व कि अनुभूति होगी।
कुम्भलगढ़ किले के अंदर प्रमुख पर्यटन स्थल
किले के अंदर बहुत से प्रसिद्ध मंदिर और महल है। जो की बहुत ही ऐतिहासिक और खूबसूरत है। पार्श्व नाथ मंदिर इस मंदिर का निर्माण 1513 में किया गया था। इसके अलावा यहां पर बावन देवी मंदिर, कुम्भा महल, बादल महल, गणेश मंदिर और वेदी मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल है।
गणेश मंदिर किले के अंदर बने मंदिरों में से सबसे प्राचीन मंदिर है जिसको 12 फिट के मंच के उपर बनाया गया है। वेदी मंदिर हनुमान पोल के पास में स्थित है जिसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। 36 मिल लंबी दीवार भी देखने लायक है। जितना प्राचीन कुंभलगढ़ का किला है उतने ही खूबसूरत यहां के पर्यटन स्थल है।
कुंभलगढ़ जाने का सबसे अच्छा समय
कुंभलगढ़ देखने जाने के लिए सबसे अच्छा समय जून से मार्च तक माना जाता है। बारिश के मौसम में यहां का वातावरण बहुत खूबसूरत लगता है इस समय यहां पर बादल मानो ऐसे लगते है जैसे जमीन पर उतर आए हो इस समय यहां चारो तरफ हरियाली ही हरियाली होती है।
इसके अलावा सर्दियों के मौसम के समय यहां का ठंडा माहौल होने की वजह से बहुत से पर्यटक आते हैं। गर्मियों के मौसम में आप को थोड़ा परेशानी का सामना करना पड़ सकता है क्यू की इस समय राजस्थान में बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है।
कुंभलगढ़ किले का प्रवेश शुल्क
कुंभलगढ़ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए भारतीय लोगो को 40 रुपए का शुल्क देना पड़ता है और विदेशी नागरिकों को 600 रुपए का शुल्क देना पड़ता है। इसके अलावा यहां पर लाइटिंग और साउंड शो के लिए आप को अलग से 100 रुपए की टिकिट लेनी पड़ती है। इस शो को सिर्फ हिंदी भाषा में ही प्रस्तुत किया जाता है।
कुंभलगढ़ दुर्ग खुलने का समय
कुंभलगढ़ दुर्ग पर्यटकों के लिए सुबह 9 बजे से शाम को 6 बजे तक खुला रहता है। इस पूरे किले को आराम से देखने के लिए 3 से 4 घंटे का समय लगता है। इसके अलावा शाम को 7 बजे लाइटिंग शो होता है
जिसमें पूरे कुंभलगढ़ दुर्ग पर लाइट का प्रकाश डाल कर दिखाया जाता है जो कि बहुत ही खूबसूरत दृश्य होता है। इस शो में साथ में संगीत भी चलता है और किले कि संपूर्ण जानकारी दी जाती है।
History Of Kumbhalgarh Fort
तो दोस्तो इस लेख के माध्यम से हमने कुंभलगढ़ किले का इतिहास जाना है जहाँ हमने आपको किले के निर्माण से लेकर यहाँ पर राज करने वाले राजाओ के बारे में भी बताया हैं, अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें।